Bhaiya pancham ki kahani 2024 in Hindi and English

Arthi
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Ek raja tha. Uske saat bete v saat bahuen thin. Chah bahuon ka pihar tha par saantveen ka koi pihar nahi tha. Chah bahuen paani bharne ke liye panghat par gayin. Wahan jakar bolin - Jaldi-jaldi paani bhar lo, baad mein dhok maarne ke liye jaana hai. Ek boli - Teri jethani kya kar rahi hai? To woh chah jani bolin - Woh to charkha kaat rahi hai. Use kya maloom, bhaiyapancham kya cheez hai. Usko koi bhai nahi hai. Paani bharkar jab ve chalne lagin to ye saari baaten sarp sun raha tha. Woh bola - Is duniya mein itna kaun dukhi hai jitna bina bhaiyon ki bahan hai. Jab ve paani bharkar chalne lagi to aage-aage ve chal padin aur peeche-peeche sarp chal pada. Jab unhone paani ki dhogad utaari to sarp ne aadmi ka roop dhaaran kar liya aur bola - Bahan! Ram-ram. Woh kehne lagi- Mere ko to koi bhai nahi tha. Tu kidhar se aa gaya? Tab woh kehne laga - Bahan! Jab teri shaadi hui tab main paida hua tha. Isliye teri-meri mulakaat nahi huin. Phir woh apni saas ko poochne ke liye gayi - Mera bhai aaya hai. Kya karna chahiye? Tab saas kehne lagi ki tel se chulha lip le aur tel mein chawal chadha le. Ab na to chulha hi sukha, na chawal hi pake. Phir woh padosan se poochne gayi mera bhai aaya hai. Kya karna chahiye? Padosan ne kaha - Mitti se chulha leep len aur paani mein chawal chadha le. Tab usne aisa hi kiya. Daal-chawal banaye. Ghee boora nikaala aur bhai ko jimaya. Jeemne ke baad bhai bola - Bahan! Main tujhe lene ke liye aaya hoon. Tab bhai-bahan dono chal pade. Jangal mein jakar bola - Ab main sarp banoonga aur is bambi mein jaoonga. Tu meri poonch pakad lena, darna nahi. Woh use bambi ke andar le gaya. Wahan pahunchne ke baad sab kehne lage - Hamaari bahan aayi hai. Koi kehne laga ki hamaari bua aayi hai. Bhabhi boli - Hamaari nanad aayi hai. Har roz maa apne bachche ko doodh pilaati thi aur woh dekhti thi.

Ek din woh boli - Aaj doodh main pilaoongi tab woh boli - Doodh to pila le par garm doodh par ghanti mat bajana. Usne galti se garm-garm doodh par ghanti baja di jiske peene se kisi ki jeebh jal gayi, kisi ke fan jal gaye. Kisi ki poonch jal gayi. Tab sab gusse mein bole ki hum ise khayenge. Tab maa boli- Ise chhod do. Isse galti ho gayi. Main maafi maangti hoon. Ab use wahan rahte-rahte bahut din ho gaye. Phir uski bhabhi ko ladka hua. Woh boli- Maang nanad! Tujhe kya chahiye. Tab woh boli- Main to naulakha haar loongi. Usne woh naulakha haar apni nanad ko de diya aur boli - Agar yeh haar tu pahengi to haar rahega. Agar aur koi pahenga to sarp ban jayega.

Raja ka ladka use lene aaya to usne bhagwan se prarthana ki - Bhagwan mera dhai din ka mahal bana de. Ab wahan par bambi ki jagah mahal ban gaya. Raja ka ladka aaya use lekar chala gaya. Unhone use khoob dhan-daulat diya. Jaate samay woh apni dhoti bhool gaya. Tab raaste mein jaane ke baad raja ka ladka bola - Main apni dhoti bhool aaya so jakar le aata hoon. Tab woh boli - Apne ko itna dhan-daulat diya hai. Apni purani dhoti lene jaoge to woh kya bolenge? Woh bola - Aisi baat nahi hai ki gayi mil jaane par purani chhod deni chahiye. Main apni purani dhoti lekar hi aaoonga. Jab woh wahan par gaya to wahan par kuchh bhi nahi tha. Sirf ek keekar ka ped tha jis par uski dhoti latak rahi thi. Jangal mein jakar talwar nikaalkar khada ho gaya ki main tujhe maroonga.

Tab woh boli - Raja mera pihar kidhar tha? Panghat par devarani aur jethani boli maar rahi thin. Sarp sun raha tha. Woh to mera dharm ka bhai tha. Mera to sirf dhai din ka maanga pihar tha. Jab woh sasuraal mein aayi to usne apna laaya hua dhan sabko dikhaya to sab kehne lagin ki bahut laayi. Ab use rahte hue bahut din ho gaye. Ab usko ek ladka hua. Uski nanad jaape mein aayi. Tab woh nanad se boli - Maang tu kya maangti hai? Tab woh nanad boli - Main to yeh naulakha haar loongi jo tu apne pihar se laayi hai. Tab woh boli - Aur tu kuchh bhi maang le main sab de doongi magar yeh mere pihar ka maanga haar hai. Is haar ko main pahnoongi to sone ka rahega agar tu pahengi to sarp ban jayega. Tab woh boli- Main to yahi haar loongi. Usne woh haar use de diya. Jab woh haar pahanne lagi to woh sarp ban gaya. Tab bhabhi boli- Maine to pehle hi kaha tha ki main pahnoongi to haar rahega tu pahengi to sarp ban jayega. Yeh mere dhai din ke maanga pihar ka haar hai.

Tab woh nanad ko boli- Mere koi bhai nahi tha. Panghat par devarani aur jethani boli maar rahi thin. Sarp sab sun raha tha. Tab woh mera dharm ka bhai bankar aaya aur mujhe le gaya. Usne hi yeh haar mujhe diya hai. Mera to dhai din ka maanga pihar tha. Tab nanad boli - Bhabhi! Bhaiyapancham ka itna sat hai? To woh kehne lagi - Haan, jo koi sachche dil se kare. Tab raja ne dhindora pitwa diya ki lagate saaman ki pancham ko bhaiyapancham ka tyohaar sab koi kare. Is din chane se dhok maaren, chane kaante ke jhaad mein piroyen, thanda khana khaayen aur naag devata ki pooja karen.


भैयापाँचम की कहानी

एक राजा था। उसके सात बेटे व सात बहुएँ थीं। छः बहुओं का पिहर था पर साँतवीं का कोई पिहर नहीं था। छः बहुएँ पानी भरने के लिए पनघट पर गईं। वहाँ जाकर बोलीं - जल्दी-जल्दी पानी भर लो, बाद में धोक मारने के लिए जाना है। एक बोली - तेरी जेठानी क्या कर रही है ? तो वह छः जनी बोलीं - वह तो चरखा कात रही है। उसे क्या मालूम, भैयापंचम क्या चीज़ है। उसको कोई भाई नहीं है। पानी भरकर जब वे चलने लगीं तो ये सारी बातें सर्प सुन रहा था। वह बोला - इस दुनिया में इतना कौन दुःखी है जितना बिना भाईयों की बहन है। जब वे पानी भरकर चलने लगी तो आगे-आगे वे चल पड़ीं और पीछे-पीछे सर्प चल पड़ा। जब उन्होंने पानी की धोगड़ उतारी तो सर्प ने आदमी का रूप धारण कर लिया और बोला - बहन ! राम-राम। वह कहने लगी- मेरे को तो कोई भाई नहीं था। तू किधर से आ गया ? तब वह कहने लगा - बहन ! जब तेरी शादी हुई तब मैं पैदा हुआ. था। इसलिए तेरी-मेरी मुलाकात नहीं हुईं। फिर वह अपनी सास को पूछने के लिए गई - मेरा भाई आया है। क्या करना चाहिए ? तब सास कहने लगी कि तेल से चूल्हा लिप ले और तेल में चावल चढ़ा ले। अब ना तो चूल्हा ही सुखा, ना चावल ही पके। फिर वह पड़ोसन से पूछने गई मेरा भाई आया है। क्या करना चाहिए ? पड़ोसन ने कहा - मिट्टी से चूल्हा लीप लें और पानी में चावल चढ़ा ले। तब उसने ऐसा ही किया। दाल-चावल बनाए। घी बूरा निकाला और भाई को जिमाया। जीमने के बाद भाई बोला - बहन ! मैं तुझे लेने के लिए आया हूँ। तब भाई-बहन दोनों चल पड़े। जंगल में जाकर बोला -अब मैं सर्प बनूँगा और इस बांबी में जाऊँगा। तू मेरी पूँछ पकड़ लेना, डरना नहीं। वह उसे बांबी के अन्दर ले गया। वहाँ पहुँचने के बाद सब कहने लगे - हमारी बहन आई है। कोई कहने लगा कि हमारी बुआ आई है। भाभी बोली - हमारी ननद आई है। हर रोज़ माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती थी और वह देखती थी।

एक दिन वह बोली - आज दूध मैं पिलाऊँगी तब वह बोली - दूध तो पिला ले पर गर्म दूध पर घंटी मत बजाना। उसने गलती से गर्म-गर्म दूध पर घंटी बजा दी जिसके पीने से किसी की जीभ जल गई, किसी के फन जल गए। किसी की पूँछ जल गई। तब सब गुस्से में बोले कि हम इसे खाएँगे। तब माँ बोली- इसे छोड़ दो। इससे गलती हो गई। मैं माफी माँगती हूँ। अब उसे वहाँ रहते-रहते बहुत दिन हो गए। फिर उसकी भाभी को लड़का हुआ। वह बोली- माँग ननद ! तुझे क्या चाहिए। तब वह बोली- मैं तो नौलखा हार लूँगी। उसने वह नौलखा हार अपनी ननद को दे दिया और बोली - अगर यह हार तू पहनेगी तो हार रहेगा। अगर और कोई पहनेगा तो सर्प बन जाएगा।

राजा का लड़का उसे लेने आया तो उसने भगवान से प्रार्थना की - भगवान मेरा ढाई दिन का महल बना दे। अब वहाँ पर बांबी की जगह महल बन गया। राजा का लड़का आया उसे लेकर चला गया। उन्होंने उसे खूब धन-दौलत दिया। जाते समय वह अपनी धोती भूल गया। तब रास्ते में जाने के बाद राजा का लड़का बोला - मैं अपनी धोती भूल आया सो जाकर ले आता

हूँ। तब वह बोली - अपने को इतना धन-दौलत दिया है। अपनी पुरानी धोती लेने जाओगे तो वह क्या बोलेंगे ? वह बोला - ऐसी बात नहीं है कि गई मिल जाने पर पुरानी छोड़ देनी चाहिए। मैं अपनी पुरानी धोती लेकर ही आऊँगा। जब वह वहाँ पर गया तो वहाँ पर कुछ भी नहीं था। सिर्फ एक कीकर का पेड़ था जिस पर उसकी धोती लटक रही थी। जंगल में जाकर तलवार निकालकर खड़ा हो गया कि मैं तुझे मारूँगा।

तब वह बोली - राजा मेरा पिहर किधर था ? पनघट पर देवरानी और जेठानी बोली मार रही थीं। सर्प सुन रहा था। वह तो मेरा धर्म का भाई था। मेरा तो सिर्फ ढाई दिन का माँगा पिहर था। जब वह ससुराल में आई तो उसने अपना लाया हुआ धन सबको दिखाया तो सब कहने लगीं कि बहुत लाई । अब उसे रहते हुए बहुत दिन हो गए। अब उसको एक लड़का हुआ। उसकी ननद जापे में आई। तब वह ननद से बोली - माँग तू क्या माँगती है? तब वह ननद बोली - मैं तो यह नौलखा हार लूँगी जो तू अपने पिहर से लाई है। तब वह बोली - और तू कुछ भी माँग ले मैं सब दे दूँगी मगर यह मेरे पिहर का माँगा हार है। इस हार को मैं पहनूँगी तो सोने का रहेगा अगर तू पहनेगी तो सर्प बन जाएगा। तब वह बोली- मैं तो यही हार लूँगी। उसने वह हार उसे दे दिया। जब वह हार पहनने लगी तो वह सर्प बन गया। तब भाभी बोली- मैंने तो पहले ही कहा था कि मैं पहनूंगी तो हार रहेगा तू पहनेगी तो सर्प बन जाएगा। यह मेरे ढाई दिन के माँगा पिहर का हार है।

तब वह ननद को बोली- मेरे कोई भाई नहीं था। पनघट पर देवरानी और जेठानी बोली मार रही थीं। सर्प सब सुन रहा था। तब वह मेरा धर्म का भाई बनकर आया और मुझे ले गया। उसने ही यह हार मुझे दिया है। मेरा तो ढाई दिन का माँगा पिहर था। तब ननद बोली - भाभी! भैयापाँचम का इतना सत है? तो वह कहने लगी - हाँ, जो कोई सच्चे दिल से करे। तब राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि लगते सामण की पाँचम को भैयापाँचम का त्यौहार सब कोई करे। इस दिन चने से धोक मारें, चने काँटे के झाड़ में पिरोयें, ठण्डा खाना खायें और नाग देवता की पूजा करें।


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